जिसमें 1989-90 के दौरान घाटी में पंडितों की कथित हत्या की जांच की मांग की गई। क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई थी, जिसमें 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने लंबी देरी का हवाला देते हुए जांच के लिए एनजीओ की याचिका को खारिज कर दिया था। 24 जुलाई, 2017 को, सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि कश्मीरी पंडितों के पलायन के 27 साल से अधिक समय बाद इस मुद्दे पर कोई जांच और सबूत एकत्र करना मुश्किल था। 25 अक्टूबर 2017 को देश की शीर्ष अदालत ने भी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रूट्स इन कश्मीर द्वारा दायर याचिका में पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान करने साथ ही कश्मीरी पंडितों की हत्या से संबंधित मामलों की जांच सीबीआई या एनआईए को सौंपी जाने की मांग याचिका में की गई है। याचिका में 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले का उदाहरण दिया गया था, जहां 33 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी संज्ञान लिया गया था।