लखनऊ : हाल के दिनों में सोशल मीडिया के दुरुपयोग में वृद्धि और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से फेक न्यूज का प्रसार बढ़ने के साथ, सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी उद्देश्य से नई सोशल मीडिया नीति की घोषणा की है। हालांकि, इस नीति का दूसरा पहलू भी है, जो समाज के विभिन्न वर्गों में चिंता का कारण बन सकता है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग तेजी से बढ़ रहा है, और फेक न्यूज का प्रसार इसे और जटिल बना रहा है। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से संबंधित फेक वीडियो सामने आए हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर के लोगों को गुमराह किया जा सकता है। भारत में भी इसी तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं, जैसे कि उत्तर प्रदेश सरकार को बदनाम करने के लिए अन्य राज्यों या देशों के वीडियो का गलत संदर्भ में इस्तेमाल।
सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए एक नीति की आवश्यकता पर विचार किया जा सकता है। इससे न केवल गलत सूचनाओं और फेक न्यूज पर काबू पाया जा सकेगा, बल्कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी कम होगा। हालांकि, इस नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसके बेजा इस्तेमाल से निर्दोष व्यक्तियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। प्रस्तावित सोशल मीडिया नीति के अनुसार, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम होंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकारें पहले ही किसी भी ‘अप्रिय’ पोस्ट के लिए लोगों को गिरफ्तार कर रही हैं, तो एक नई कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी? हाल के वर्षों में, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक पोस्ट करने वालों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मौजूदा कानूनी ढांचे के बावजूद, सोशल मीडिया पर निगरानी और नियंत्रण बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
किसी भी कानून के साथ, उसके दुरुपयोग की संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं। हाल ही में मिर्जापुर में एक यूट्यूबर को सरकारी योजनाओं की आलोचना करने पर प्रताड़ित किया गया था। इसी तरह, कई मामलों में अधिकारियों ने अपने नाकामियों को छुपाने के लिए या व्यक्तिगत प्रतिशोध के तहत सोशल मीडिया पर आलोचना करने वालों को गिरफ्तार किया। अगर नई नीति के तहत अधिकारियों को और अधिक शक्तियां मिलती हैं, तो इसका दुरुपयोग होने की संभावना है। नई सोशल मीडिया नीति का सबसे बड़ा प्रभाव आम लोगों पर पड़ सकता है, जो सोशल मीडिया पर अपनी चिंताओं और समस्याओं को व्यक्त करते हैं। अगर इस नीति का दुरुपयोग होता है, तो आम लोग सरकारी योजनाओं की गुणवत्ता या स्थानीय समस्याओं पर कुछ भी कहने से डर सकते हैं। इससे एक ऐसा समाज बन सकता है जहां लोग अपनी आवाज उठाने में हिचकिचाएंगे, और समाज में पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना कमजोर हो सकती है। उत्तर प्रदेश की नई सोशल मीडिया नीति की आवश्यकता पर बहस हो सकती है, लेकिन इस पर ध्यान देना भी जरूरी है कि कैसे इसे लागू किया जाएगा और इसका दुरुपयोग कैसे रोका जा सकता है। एक ओर, यह नीति फेक न्यूज और दुष्प्रचार को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है, वहीं दूसरी ओर इसका बेजा इस्तेमाल आम लोगों की स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि सरकारें इस नीति को लागू करते समय पारदर्शिता और न्याय की सुनिश्चितता पर ध्यान दें।
( नीरज महेरे )